नमस्ते! दोस्तों आज हम लोग जानेंगे जॉन डीवी का जीवन परिचय, जॉन डेवी के शिक्षा सिद्धांत क्या है? जॉन डीवी का दर्शन, जॉन डीवी के अनुसार स्कूल क्या है? जॉन डेवी के शिक्षा का उद्देश्य क्या है? आधुनिक शिक्षा में जॉन डेवी के प्रभाव क्या है?...
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| John Dewey |
John Dewey in Hindi
जीवन परिचय
महान प्रयोजनवादी एवं शिक्षाशास्त्री जॉन डेवी का जन्म 20 अक्टूबर 1859 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के बर्लिंगटन (Burlington) क्षेत्र के वरमोंट (Vermont) नामक स्थान में हुआ। उनके पिताजी एक सामान्य दुकानदार थे। जॉन डेवी का बचपन वेलिंगटन गांव में बिता। इसका प्रारंभिक लालन-पालन ग्रामीण वातावरण में हुआ। ये वरमोंट विश्वविद्यालय से 1879 ईस्वी में स्नातक हुआ। उन्होंने दर्शनशास्त्र का उच्चतम एवं गहन अध्ययन किया। इसके उपरांत कुछ दिनों तक अध्यापक का कार्य किया। अध्यापक कार्य क्रमशः मिनेसोटा विश्वविद्यालय, मिशीगन विश्वविद्यालय, शिकागो विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ाया। इस बीच में जॉन डेवी शोध कार्य में भी लगे रहे तथा हापकिन्स विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पीएचडी करने के उपरांत मिशीगन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता पद पर सन् 1854 ईस्वी में नियुक्त हुए बाद में शिकागो विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक भी रहे।
जॉन डेवी शिक्षा
में अत्यधिक रुचि रखते थे। वे अपने विश्वास एवं विचार को व्यवहारिक रूप प्रदान
करने के लिए शिकागो विश्वविद्यालय में उन्होंने एक प्रयोगशाला विद्यालय
की स्थापना की। इस विद्यालय का औपचारिक नाम था। विश्वविद्यालय प्राथमिकशाला
सन् 1902
से सन् 1904 तक जॉन डेवी School Of Education के निर्देशक नियुक्त हुए। सन् 1904 ईस्वी में वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में
दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक हुए। इस पद पर वे 1930 ईस्वी तक आसीन रहे। उन्होंने शिक्षा, मनोविज्ञान, दर्शन, नीतिशास्त्र, तथा राजनीतिशास्त्र पर लगभग चार दर्जन पुस्तके लिखी, उसमें प्रमुख निम्नलिखित है-
1. द स्कूल ऐंड सोसाइटी
(1899)
2. दि चाइल्ड एण्ड दि क्यूरीकुलम
(1902)
3. स्कूल्स ऑफ टूमॉरो (1915)
4. डेमोक्रेसी एण्ड एडुकेशन (1916)
इस महान शिक्षा शास्त्री की मृत्यु सन् 1952 ईस्वी में हुई।
जॉन देवी के दर्शन-
जॉन देवी के दर्शन
मूल रूप से प्रयोजनवादी और प्रयोगवादी है वस्तुतः यह दैनिक जीवन से अलग की वस्तु
नहीं है या तो जीवन की वास्तविक समस्याओं से संबंधित रहती है यह समस्याएं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक सभी प्रकार की हो सकती है इसके दार्शनिक विचार एवं
सिद्धांत इस प्रकार है-
1. निश्चित मूल्य तथा सत्य का कोई अस्तित्व नहीं है-
जॉन डेवी ने
स्पष्ट शब्दों में कहा कि
"सत्य वही है जो उपयोगी
है।"
व्यवहारिक
स्थितियों में जो कार्य हम नहीं करते हैं वह सभी और सत्य है जो व्यवहार में आए वही
सत्य है अतः जो कुछ भी हमारे व्यवहार में आता है वह हमारे जीवन के विकास में सहायक
होता है वही सत्य है।
2. विश्व निर्माण अवस्था में-
विकास के
सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले जॉन डेवी साहब का मत है कि सुंदर से सुंदर विश्व
अभी आने वाला है क्योंकि यह पूर्णता की ओर सतत् परिवर्तनशील है। उसके विचार में इस
परिवर्तन का सबसे बड़ा माध्यम मानव है। अतः उसका कार्य विश्व के सौंदर्य का उपभोग
करना नहीं बल्कि उसे सुंदर से सुंदर बनाना है। परिवर्तनशील विचारों के अनुरूप
नवनिर्मित करना ही हमारा धर्म और मानव जीवन की सार्थकता भी उसी में है।
3.मन व क्रिया दोनों एक ही है-
विचार तथा क्रिया
एक दूसरे के पूरक होता है ये दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। हमारे
विचारों में हमारी आत्मा अवतरित होती है तथा विचार ही हमें क्रिया तथा संघर्ष की
ओर प्रेरित करता है। एक आदर्श समाज तो वह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के अच्छाई और
कल्याण को दृष्टि में
रख कर सोचता तथा
करता है। विचार क्रिया की योजना होती है। जॉन डेवी ने एक महान नारा दिया था जिसे "अनुभव" कहते हैं।
4.प्रकृति परिवर्तनकारी साधनों का निर्माण करती
है-
जॉन डेवी के विचार
में प्रकृति स्वयं ही पूर्णता की और विकासशील है। मानव प्रकृति के हाथ में एक
मात्र साधन है। अतः पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मानव स्वाभाविक रूप से तथा
वैज्ञानिक रूप से क्रियाशील होती है।
5.व्यक्ति और समाज के बीच सजीव संबंध होता है-
जॉन डीवी के विचार
में व्यक्ति के लिए प्राकृतिक और मानवीय दोनों ही प्रकार के परिवेश जरूरी है। मानव
का विकास ना तो एकांत में हो सकता है और ना ही समाज से हटकर अलग रह कर। मनुष्य
प्राकृतिक परिवेश में रहकर समुचित एवं सम्यक विकास करता है। अतः मनुष्य का समाज से
सजीव संबंध बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
जॉन डेवी के शिक्षा सिद्धांत-
शिक्षा जीवन
पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है। यह तो पलने से प्रारंभ होकर मृत्यु तक चलती
रहती है। यही कारण है कि जॉन डेवी अपने शिक्षा सिद्धांत को 4 मान्यताओं में बांटा है।
1.शिक्षा ही जीवन है-
अब तक शिक्षा को
जीवन की तैयारी माना जाता था किंतु जॉन देवी साहब ने कहां की "शिक्षा स्वयं जीवन है।" वस्तुतः शिक्षा तथा जीवन एक ही वस्तु के दो नाम है। उसके अनुसार विद्यालय एक लघु समाज है। अतएव विद्यालयों में भी उन्हें
समाज बनाने तथा उसका अनुभव प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
2.शिक्षा विकास है-
विकास ही शिक्षा
है रिक्त मस्तिष्क को ज्ञान तथा सूचनाओं से भरने को सही शिक्षा नहीं कहा जा सकता
है। सच तो यह है कि विकास का फल होता है और अधिक विकास तथा शिक्षा की सार्थकता से
शिक्षा में विकास होती है।
3.अनुभव ही शिक्षा है-
अनुभव शिक्षा को
वास्तविक शिक्षा की संज्ञा दी जाती है। अनुभव हमें नवीन प्रकाश प्रदान करता है।
अनुभव विकास का प्रमुख साधन है इसलिए यह कहना सत्य है कि अनुभव ही शिक्षा है।
4.
शिक्षा एक
सामाजिक प्रक्रिया है-
मानव एक सामाजिक
प्राणी है और समाज में ही उसका विकास संभव है। आज के समय में तीन शक्तियों द्वारा
हमारे समाज में प्रतिदिन नया रूप बनते जा रहा है। ये तीन शक्तियां हैं- प्रजातंत्र, उद्योग, और विज्ञान। अतः इन तीन शक्तियों के प्रभाव से परिवर्तनशील सामाजिक संबंधों को
वास्तविक ज्ञान बच्चों को देना आवश्यक है। इसी संदर्भ में जॉन डेवी साहब ने कहा है
की ''जीवन की सामाजिक निरंतरता ही शिक्षा है।" अतः सामाजिक संबंधों में व्यक्ति द्वारा सक्रिय
रुप में भाग लेने का प्रक्रिया का ही नाम शिक्षा है।
जॉन डेवी के शैक्षिक उद्देश्य-
जॉन डेवी के
अनुसार शिक्षा का उद्देश्य निम्नलिखित है-
1. बच्चे का विकास-
शिक्षा का प्रमुख
उद्देश्य है बच्चों का विकास और शिक्षा का कर्तव्य है कि वह प्रत्येक बच्चे की
शक्ति तथा उसके व्यक्तित्व का विकास उसकी क्षमता के अनुरूप करें।
2.
सामाजिक कुशलता-
जॉन डेवी के
अनुसार बच्चे की मौलिक शक्तियों का सर्वोत्तम विकास सामाजिक परिवेश में ही होता
है। जॉन डेवी चाहते थे कि बच्चों का व्यक्तित्व का कुछ ऐसा विकास हो जो
प्रजातांत्रिक समाज के अनुरूप हो।
3.जीवन की तैयारी-
वस्तुतः जॉन डेवी
शिक्षा को ही जीवन मानते थे। अतः वर्तमान जीवन तथा निकट भविष्य के जीवन की तैयारी
शिक्षा का उद्देश्य है सत्य तो यह है कि बच्चे अपने वर्तमान तथा निकट भविष्य में
रुचि रखते हैं।
एक आदर्श विद्यालय के संबंध में जॉन डीवी के विचार-
जॉन डेवी ने कहा
है कि औद्योगिक क्रांति तथा सामाजिक-आर्थिक आंदोलनों में आज के विश्व पूर्ण रूप से
नवीन स्वरूप प्रदान कर दिया है। शिक्षाविदों के मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु जॉन
डेवी ने सन् 1896
ईस्वी में एक 'लेबोरेटरी स्कूल' शिकागो में स्थापित किया और एक आदर्श विद्यालय का रूप दिया। उसके अनुसार आदर्श विद्यालय की विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. विस्तृत आदर्श परिवार-
जॉन डेवी के विचार
में आदर्श विद्यालय एक विस्तृत परिवार ही है। परिवार में बच्चे अपने मां बाप से
तथा वास्तविक जीवन से स्नेह तथा प्रशिक्षण दोनों ही प्राप्त करते हैं। वे परिवार
के अन्य सदस्यों के अधिकार का आदर भी करना सीखते हैं। विद्यालय की सार्थकता भी
बच्चों को परिवारिक वातावरण प्रदान करने में है। शिक्षक शिक्षिकाओं का स्नेह उनके
लिए अमृत का काम करता है। इस प्रकार विद्यालय बड़ी परिवार के रूप में सार्थक तथा
प्रभाव कारी हो सकता है।
2.
वास्तविक जीवन
का अनुभव प्रदान करने में सक्षम-
जॉन देवी महोदय को
परंपरागत पुस्तकिय शिक्षण सही नहीं लगा। वह तो विद्यालय को सजीव, सक्रिय स्वभाव प्रदान करना चाहते थे। जहां
बच्चे परिस्थितियों में सक्रिय सहयोग कर शिक्षा ग्रहण करें।
3.प्रयोग विद्यालय-
विद्यालय तो
वस्तुतः शोध का स्थल है। नन्हे बच्चे यहां स्वानुभव द्वारा समस्याओं का समाधान तथा
सत्य पर पहुंचते हैं। कक्षा प्रयोगशाला होती है और शिक्षक पथ प्रदर्शक या प्रयोग
प्रदर्शक इस प्रकार विद्यालय एक कार्यरत वर्कशॉप के रूप में परिणत हो जाता है।
जहां कार्यों का संचालन बड़े ही रोमांच ढंग से होता है।
4.बच्चों के विकास के अनुरूप विद्यालय
कार्यक्रम-
आदर्श विद्यालय के
कार्यक्रमों का निर्माण बच्चों के विकास को दृष्टि में रखकर होता है। प्राथमिक
विद्यालय में बच्चे विकास के तीन अवस्थाओं से गुजरते हैं-
(i)
4 से 6 वर्ष तक क्रीड़ावस्था
(ii)
8 से 12 वर्ष तक की स्वत: ध्यानावस्था
(iii)
12 वर्ष के उपरांत
ध्यान की अवस्था।
इन अवस्थाओं को
ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम तथा क्रियाशीलन का आयोजन निर्धारण किया जाता है।
5.
शिक्षक का कार्य
अत्यंत महत्वपूर्ण है-
जॉन डेवी का मानना
था कि शिक्षक तो सच्चे ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं शिक्षक ही छात्रों के सामाजिक
दृष्टिकोण, सामाजिक रूचि, तथा सामाजिक धारणा का निर्माण करते हैं। शिक्षक का प्रधान कर्तव्य है छात्रों
के समुचित विकास के लिए उनके क्रियाशीलों का सही मार्गदर्शन प्रदान करना।
6.
धनात्मक अनुशासन-
जॉन डेवी ने दंड, पुरस्कार, तथा बाह्य नियंत्रण को अनुशासन का आधार माना है। सामाजिक सहयोग के द्वारा
बच्चों में स्वत: की अनुशासन उत्पन्न होता है, यही धनात्मक अनुशासन है।
आधुनिक शिक्षा में जॉन डेवी के प्रभाव-
आधुनिक शिक्षा में
जॉन डेवी की देन और उन पर उसका प्रभाव निम्नलिखित है-
1.
अनुभव की, अनुभव के द्वारा, तथा अनुभव के लिए शिक्षा-
जॉन डेवी ने
बच्चों के वास्तविक अनुभव को ही शिक्षा का आधार माना है। आज विद्यालयों में
प्रयुक्त होने वाली क्रियाशीलन विधियां John Dewey की ही देन है।
2.
बच्चों की रुचि
यों का महत्व-
जॉन डेवी ने
बच्चों की रुचि हो तक रुझान को काफी मदद प्रदान किया, विषय के चुनाव उनके शिक्षण के कार्य इन्हीं को
ध्यान में रखकर होना चाहिए। यही कारण है कि आज विद्यालयों में रुचि, तथा रुझान की जांच की परिपाटी लोकप्रिय हो रही
है।
5. शिक्षक का स्थान-
जॉन डेवी ने
विद्यालय को एक समाज माना तथा शिक्षक को उस समाज का वरिष्ठ सदस्य माना। उन्होंने
इस मान्यता को प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों में व्यवहार में लाने का सफल
कार्य किया। उसने शिक्षक परंपरागत डिक्टेटर रूप तथा भयावह व्यक्ति से मुक्त कर एक
परिवारिक शिक्षक का रूप दिया।
4.प्रयोग विद्यालयों का निर्माण-
आज सभी उन्नत
देशों में प्रयोग विद्यालय देखने को मिलता है इन विद्यालयों में शिक्षा संबंधी शोध
होते हैं तथा विभिन्न सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप दिया जाता है। वस्तुतः इस
प्रकार एक प्रयोग विद्यालय का शुरुआत जॉन डेवी ने सर्वप्रथम शिकागो में किया था।
5. प्रोजेक्ट विधि तथा पाठ्यक्रम का निर्माण-
शिक्षा के क्षेत्र
में प्रोजेक्ट विधि का समावेश जॉन डेवी का महान देन है। इस विधि ने शिक्षा को
वास्तविकता तथा सार्थकता का वरदान दिया। जॉन डेवी ने पाठ्यक्रम निर्माण के
सिद्धांत में अमूल परिवर्तन कर दिया। आज के पाठ्यक्रम निर्माण सिद्धांत की
प्रगतिशीलता तथा लचीलापन जॉन डेवी की ही देन है।
मुझे आशा है कि आपलोग जॉन डीवी का जीवन परिचय, जॉन डेवी के शिक्षा सिद्धांत क्या है? जॉन डीवी का दर्शन, जॉन डीवी के अनुसार स्कूल क्या है? जॉन डेवी के शिक्षा का उद्देश्य क्या है? तथा आधुनिक शिक्षा में जॉन डेवी के प्रभाव क्या है?... समझ गए होंगे।
